ऊड़ता हुआ मुसाफिर
क्या कभी देखा है तुमने ?
क्या कभी देखा है तुमने ?
क्या कभी सोचा है की
मौत को भी देखा होगा उसने करीब से ?
क्या बातें करता होगा हवाओं से
क्या कभी सोचा है तुमने ?
हर नए सफ़र में क्या कहनीं लिखता होगा
क्या कभी यकीन किया होगा उसपे ?
तकलीफों में भी आज़ादी का एहसास होता है उसे
कभी महसूस किया है तुमने ?
जंगलों में भटकने पर भी
कभी अच्छा लगा है तुम्हे ?
बारिश की उन् तीखी बूंदों से
कभी गुफ्तगू की है तुमने ?
शारीर से बहार भी कभी
किसी को महसूस किया है तुमने ?
जितनी भी घेराई में उतरता है
उतना ही पानी कम लगता है उसे !
इन् सबका एहसास कौन कर सकता है
यह कभी पुछा है तुमने ?
इन् सभी एहसासों को
करीब से जीया है हमने !!
मौत को भी देखा होगा उसने करीब से ?
क्या बातें करता होगा हवाओं से
क्या कभी सोचा है तुमने ?
हर नए सफ़र में क्या कहनीं लिखता होगा
क्या कभी यकीन किया होगा उसपे ?
तकलीफों में भी आज़ादी का एहसास होता है उसे
कभी महसूस किया है तुमने ?
जंगलों में भटकने पर भी
कभी अच्छा लगा है तुम्हे ?
बारिश की उन् तीखी बूंदों से
कभी गुफ्तगू की है तुमने ?
शारीर से बहार भी कभी
किसी को महसूस किया है तुमने ?
जितनी भी घेराई में उतरता है
उतना ही पानी कम लगता है उसे !
इन् सबका एहसास कौन कर सकता है
यह कभी पुछा है तुमने ?
इन् सभी एहसासों को
करीब से जीया है हमने !!
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