अंधेरें बहुत घने है यहाँ ना सूरज ना रोशिनी का निशां है यहाँ आँखें तो खुली है पर देख नहीं पाती है राहें तो कई है पर क्यूँ मंज़िल मिल नहीं पाती है कहते है लोग राहों पे चलकर नहीं मिला आजतक किसी को कुछ जहाँ से चले थे वही लौटकर आता है सबकुछ तो क्यूँ मैं भटकू इन राहों में जब लौट आना मुझे जहाँ मैं खड़ा ना देखूँ किसीको ना सोचूँ किसीको फिर भी आज मैं क्यू खुद से ही लड़ा |